शनिवार, 17 सितंबर 2011

"स्निग्धा ग्रह के वासी" –एक काल्पनिक कहानी

(मेरी यह कहानी "विज्ञान प्रगति" के जून'2009 के अंक में प्रकाशित हुई थी.)





सन् 2050 ईस्वी।
            मध्यपूर्व की भीषण लड़ाई के बाद सं.रा. अमेरिका और एकीकृत यूरोप जर्जर हो चुके हैं; चीन में छात्रों के नेतृत्व में लोकतंत्र कायम हो चुका है; ब्रिटेन उत्तरी अटलान्टिक महासागर में डूब चुका है- वहाँ के नागरिकों को पहले ही कनाडा में बसाया जा चुका था; और.... वृहत्तर भारतके नेतृत्व में कायम होने वाली आदर्श विश्व व्यवस्थाअपने अन्तिम चरण में है।
            23 मार्च की सुबह। समय 3 बजकर 50 मिनट।
            चन्द्रमा पर स्थित अन्तरिक्ष स्टेशन ‘‘नीहारिका’’ ने अन्तरिक्ष से आये कुछ सन्देशों को पकड़ा। सन्देश वैदिक संस्कृत में थे। कुछ ही पलों में दुनिया भर में हलचल मच गयी। सन्देश का तात्पर्य कुछ यूँ था कि स्निग्धानामक ग्रह का अन्तरिक्षयान ‘‘चैतन्य’’ ब्रह्माण्ड का नक्शा बनाने के काम पर निकला हुआ है और वही यह सन्देश प्रसारित कर रहा है। सन्देश में दूसरी तकनीकी जानकारियाँ भी थीं, ताकि अगर कोई चाहे, तो सहजता से उत्तर दे सके।
            कोई बारह घण्टों की मशक्कत के बाद नीहारिकाके खगोलीय दूरबीनों ने उस अन्तरिक्षयान यानि ‘‘चैतन्य’’ को खोज निकाला। वह पृथ्वी से करीब 10खरब, 14अरब, 26करोड़, 40 लाख किलोमीटर दूर था और एक लाख किलोमीटर प्रति सेकण्ड की प्रचण्ड रफ्तार से हमारी आकाशगंगासे दूर जा रहा था।
            उसी वक्त, यानि शाम चार बजे करीब उसे वैदिक संस्कृत में उत्तर भेजा गया कि उसका सन्देश पा लिया गया है। साथ ही, आकाशगंगा के अन्दर पृथ्वी की स्थिति की जानकारी भी दी गयी।
            ‘चैतन्यजिस रफ्तार से धरती से दूर जा रहा था, उससे अनुमान लगाया कि लगभग 58 दिन, 17 घण्टे बाद 21 मई के दिन ही उसे धरती का सन्देश मिल पायेगा। और फिर, जब वह उत्तर भेजेगा, तो उसे भी धरती तक पहुँचने में उतना ही समय लगेगा। यानि धरतीवासियों के पास प्रायः चार महीनों तक इन्तजार करने के अलावे और कोई चारा नहीं था। ये चार महीने बड़े तनाव और अटकलों की दौर के बीच गुजरे।
***
            19 जुलाई का ब्रह्ममुहुर्त।
            ‘चैतन्यका सन्देश आया कि उसने धरती की ओर बढ़ना शुरु कर दिया है और अगले 6लाख, 33हजार, 900पलों के बाद वह धरती पर मौजूद होगा! चुँकि जिस वक्त चैतन्यको धरती का सन्देश मिला होगा, उस वक्त धरती से उसकी दूरी 15खरब, 21अरब, 36करोड़ किलोमीटर रही होगी और उसकी गति तो ज्ञात थी ही; अतः अनुमान लगाया कि वे 24 सेकण्ड को एक पल मान रहे हैं। खैर, उनके अवतरण का दिन निर्धारित हुआ- 13 नवम्बर!
            भारतीय प्रधानमंत्री ने 25 जुलाई को ही आदर्श विश्व व्यवस्थाका आपात्कालीन सत्र बुला डाला। दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों के अलावे वरिष्ठ खगोल विज्ञानियों तथा विश्व सैन्य संगठन प्रमुख अधिकारियों को भी इसमें बुलाया गया। काफी गर्मा गर्म बहस हुई कि अगर ये अन्तरिक्षयात्री मित्रन साबित हुए तो क्या होगा? उन्हें पृथ्वी की स्थिति की जानकारी देकर हमने भूल तो नहीं कर दी? दूसरी ओर, चूँकि अन्तरिक्षयात्रियों ने वैदिक संस्कृत का प्रयोग किया था, अतः उनकी प्रवृत्ति भली होगी- ऐसा मानने वालों की संख्या भी काफी थी। बहस के बाद यह प्रस्ताव पारित हुआ कि चैतन्यके स्वागत की तैयारी की जाय, मगर दो किलोमीटर पीछे गुप्त रुप से सेनाओं को भी तैनात रखा जाय।
            चम्बल स्थित तृतीय नेत्रवेधशाला के विशाल प्रांगण को अवतरणस्थल का रुप दिया जाने लगा और धरती पर इसकी भौगोलिक स्थिति की जानकारी चैतन्यको भेज दी गयी।
            समय के साथ चैतन्यके आकार-प्रकार की जानकारियाँ उपलब्ध होने लगीं और पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं:
            ‘चैतन्यअन्तरिक्षयान का आकार एक विशाल लट्टू-जैसा था, जिसकी खड़ी ऊँचाई 29 मीटर तथा अधिकतम परिधि 182.28 मीटर थी। ऊपरी ध्रुव से 7 मीटर नीचे अधिकतम परिधि थी और इसी के चारों तरफ 7 मीटर की ही दूरी पर 22 मीटर चैड़ा वलय तैरता रहता था। वलय सहित यान की परिधि बनती थी 364.57 मीटर, यानि मुख्य यान की दुगनी। यान का वलय दक्षिणावर्त दिशा में घूमता था, जबकि यान वामावर्त दिशा में। घूर्णन की गति उतनी ही थी, जितनी कि यान की गति। पर चुँकि यान के दोनों ध्रुव घूर्णन से मुक्त थे, अतः अनुमान लगाया गया कि अन्दर मुख्य यान स्थिर रहता होगा और उसके चारों तरफ का विशेष आवरण घूर्णन में भाग लेता होगा।
***
            13 नवम्बर। दिन के ग्यारह बजे।
            महाकाय चैतन्यने तृतीय नेत्रवेधशाला के विशाल प्रांगण में अवतरण किया। हजारों लोगों ने अपनी आँखों से और दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति ने टीवी स्क्रीन पर इस दृश्य को देखा। मुख्य यान अपनी आठ विशेष टाँगों के बल पर धरती पर खड़ा था; उसका घूर्णन रुक चुका था। हाँ, वलय का घूर्णन धीरे-धीरे शान्त हो रहा था।
            यान से सन्देश आया कि पहले पाँच पृथ्वीवासियों को यान में भेजा जाय, ताकि उनके मस्तिष्क से वे जरुरी जानकारियाँ हासिल कर सकें। कुछ विचार-विमर्श के बाद तीन वैज्ञानिकों तथा दो सैन्य अधिकारियों को यान में भेजने का निर्णय लिया गया। यान से निकले एक लिफ्ट के माध्यम से पाँचों अन्दर चले गये।
            कुछ ही मिनटों के बाद यान का मुख्य दरवाजा खुला और पाँचों पृथ्वीवासियों के साथ अन्तरिक्षयात्री एक-एक कर हाथ हिलाते हुए बाहर निकलने लगे। सारा प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
            अन्तरिक्षयात्री संख्या में तीस थे- पन्द्रह पुरुष तथा पन्द्रह स्त्रियाँ। वे मनुष्य जैसे ही थे, सिर्फ उनका कद लम्बा था- करीब नौ फीट, शरीर दुबला-पतला था और उनके सिर का पिछला भाग ज्यादा बढ़ा हुआ था। उनका पहनावा लम्बे चोगे जैसा था, ढीला-ढाला। दल के नेता का नाम ऋत्विक था।
            शाम को वैज्ञानिकों तथा धरती के कुछ शासनाध्यक्षों के साथ अन्तरिक्षयात्रियों की बैठक हुई। बैठक के दौरान जो जानकारियाँ हासिल हुईं, वे कुछ इस प्रकार थीं:-
            अरबों वर्ष पहले महाकाशीय विस्फोट के बाद जिन परिस्थितियों में पृथ्वी का जन्म हुआ, ठीक उन्हीं परिस्थितियों में कई करोड़ प्रकाशवर्ष दूर स्निग्धाग्रह का जन्म हुआ। जन्म के बाद की परिस्थितियाँ भी एक समान रहीं। सिर्फ दो फर्क थे- एक, स्निग्धा का आकार छोटा था; दो, वहाँ जीवन के विकासक्रम में डायनासॉरसों का कालखण्ड आया ही नहीं। फलस्वरुप, पृथ्वी पर मानव के जन्मे जहाँ अभी मात्र साढ़े सतरह लाख साल हुए हैं, वहीं स्निग्धा पर आज से 21 करोड़ 18 लाख साल पहले ही मानव चहलकदमी करने लगे थे! 
            स्निग्धा के मानवों ने 15 लाख साल के अन्दर काफी उन्नति की। यह उन्नति आध्यात्मिक थी। वे ऐसी स्थिति में पहुँच गये कि अपने ज्ञान को शक्तिशाली मानसिक तरंगों के माध्यम से सारे ब्रह्माण्ड में प्रवाहित करने लगे। करोड़ों वर्षों बाद यही तरंगें पृथ्वी से भी टकराईं। तब यहाँ के बुद्धिमान मानवों, यानि भारतीय ऋषियों ने उन्हें ब्रह्मा के सन्देशके रुप में ग्रहण किया।
            कालान्तर में स्निग्धा वासियों का झुकाव भौतिक उन्नति की ओर बढ़ गया और वहाँ से प्रज्ञा-तरंगोंका प्रसारण बन्द हो गया। कुछ हजार वर्षों में ही उन्होंने विज्ञान व तकनीक के क्षेत्रों बहुत ज्यादा उन्नति कर ली और वे बड़ी-बड़ी योजनायें बनाने लगे। ऐसी ही एक योजना बनी- ब्रह्माण्ड का नक्शा तैयार करने की। इसके लिए विशेष अन्तरिक्षयान चैतन्यका निर्माण किया गया और इच्छुक वैज्ञानिकों का एक दल ऋत्विक के नेतृत्व में इस दुस्साध्य अभियान पर निकल पड़ा।
            ..........लगभग 21 करोड़ वर्षों की ब्रह्माण्ड यात्रा के बाद वही चैतन्यआज पृथ्वी पर खड़ा था। इस यान के यात्रीगण जिस जीवनी द्रवको पीकर जीवित थे, उसके एक-एक बूँद से शरीर को लाखों वर्षों तक पोषण मिलता था। इसके अलावे बारी-बारी से हजारों-लाखों वर्षों की नींद से भी वे खुद को तरोताजा रखते थे। अन्तरिक्ष में न तो उनके शरीर के कोशिकाओं की टूट-फूट होती थी और न ही उनकी उम्र बढ़ती थी।
            इसके आगे की कुछ बातें खुद ऋत्विक के शब्दों में-
            ‘‘..........जब हमलोग स्निग्धा ग्रह से रवाना हुए थे, तब हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का 15 से 20 प्रतिशत अंश इस्तेमाल करते थे। उसी दौरान हमें यह पता चल गया था कि मस्तिष्क की क्षमताओं का हम जितना ज्यादा इस्तेमाल करेंगे, हमारी शारीरिक क्षमताएं उतनी ही कमजोर होती जायेंगी। काफी बहस के बाद स्निग्धावासियों ने प्रतिभा के विकासको नियंत्रित करना उचित नहीं माना और हम मस्तिष्क की क्षमता का ज्यादा-से-ज्यादा उपयोग करते रहे।
            ‘‘एक समय ऐसा भी आया, सम्भवतः तैंतीस प्रतिशत के आस-पास- जब मस्तिष्क के विकास को नियंत्रित करना हमारे बस में नहीं रहा। यह अपने-आप विकसित होने लगा। ..........आज जबकि हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का 45 से 50 प्रतिशत अंश इस्तेमाल कर रहे हैं, हम सन्तान उत्पादन के योग्य नहीं रह गये हैं। यही स्थिति हमारे ग्रह पर भी है। गनीमत है कि वहाँ मृत्युको जीत लिया गया है। वर्ना, स्निग्धा आज एक वीरान ग्रह होता!
            ‘‘मस्तिष्क का विकास आज भी जारी है और उम्मीद की जा रही है कि अगले पच्चीस करोड़ वर्षों में हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का शत-प्रतिशत अंश इस्तेमाल करने लगेंगे। ऐसा हो जाने पर हमारा भौतिक अस्तित्वशून्य हो जायेगा- हम सिर्फ ज्ञान रह जायेंगे। दूसरे शब्दों में- हम ब्रह्मबन जायेंगे।
            ‘‘यही कारण है कि कुछ समय पहले हमें हमारे ग्रह से आदेश मिला कि हम ब्रह्माण्ड के किसी भी कोने से ढूँढ़कर कुछ प्राणियों को स्निग्धापर बसने के लिए तैयार करें। ..........और यकीन कीजिये, कुछ पृथ्वीवासियों को हमारे साथ देखकर हमारे स्निग्धावासी बहुत ही प्रसन्न होंगे।’’
***
            कुछ दिनों बाद दुनियाभर के अखबारों में एक विज्ञापन छपा, जिसका आशय कुछ इस प्रकार थाः-
            ‘‘पृथ्वी से आठ करोड़ प्रकाशवर्ष दूर स्थित रमणीक ग्रह ‘‘स्निग्धा’’ पर बसने के लिए एक सौ पृथ्वीवासियों की जरुरत है। परिवारोंको प्राथमिकता दी जायेगी। ‘‘स्निग्धा’’ का वातावरण पृथ्वी- जैसा ही है और वहीं के अन्तरिक्षयान ‘‘चैतन्य’’ में यह यात्रा पूरी की जायेगी। यात्रा करीब चैबीस करोड़ वर्षों की होगी- मगर इस दौरान यात्रियों की उम्र एक सेकण्ड भी नहीं बढ़ेगी। यान में एक-एक नीन्द कई लाख वर्षों की होगी। जब तक आप जागेंगे, अन्तरिक्ष की खूबसूरती आपको बोर नहीं होने देगी- इसका भरोसा रखें। यात्रीगण अपने साथ पालतू पशु-पक्षी, वृक्षों के पौधे व बीज ले जा सकेंगे। इच्छुक व्यक्ति / परिवार सम्पर्क करें:-
            ‘तृतीय नेत्र
            चम्बल अन्तरिक्ष स्थल
            वृहत्तर भारत।’’
***
(पुनश्चः चैतन्यको स्निग्धा ग्रह से पृथ्वी तक आने में 21 करोड़ वर्ष लगे, मगर वापसी की यात्रा प्रायः 24 करोड़ वर्षों की होगी, क्योंकि ब्रह्माण्ड का फैलाव सतत् जारी है।)

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